भगवान भैरव की जन्म कथा

ब्रह्मा और विष्णु में एक समय विवाद छिड़ा कि परम तत्व कौन है ? उस समय वेदों से दोनों ने पूछा :- क्योंकि वेद ही प्रमाण माने जाते हैं। वेदों ने कहा कि सबसे श्रेष्ठ शंकर हैं। ब्रह्मा जी के पहले पाँच मस्तक थे। उनके पाँचवें मस्तक ने शिव का उपहास करते हुए, क्रोधित होते हुए कहा कि रुद्र तो मेरे भाल स्थल से प्रकट हुए थे, इसलिए मैंने उनका नाम “रुद्र’ रखा है। अपने सामने शंकर को प्रकट हुए देख उस मस्तक ने कहा कि हे बेटा ! तुम मेरी शरण में आओ, मैं तुम्हारी रक्षा कर्रूँगा।
(स्कंद पुराण, काशी खण्ड अध्याय ३०)

इस प्रकार गर्व युक्त ब्रह्मा जी की बातें सुनकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हो उठे और अपने अंश से भैरवाकृति को प्रकट किया। शिव ने उससे कहा कि “काल भैरव’ ! तुम इस पर शासन करो। साथ ही उन्होंने कहा कि तुम साक्षात “काल’ के भी कालराज हो। तुम विश्व का भरण करनें में समर्थ होंगे, अतः तुम्हारा नाम “भैरव’ भी होगा। तुमसे काल भी डरेगा, इसलिए तुम्हें “काल भैरव’ भी कहा जाएगा। दुष्टात्माओं का तुम नाश करोगे, अतः तुम्हें “आमर्दक’ नाम से भी लोग जानेंगे। हमारे और अपने भक्तों के पापों का तुम तत्क्षण भक्षण करोगे, फलतः तुम्हारा एक नाम “पापभक्षण’ भी होगा।

भगवान शंकर ने कहा कि हे कालराज ! हमारी सबसे बड़ी मुक्ति पुरी “काशी’ में तुम्हारा आधिपत्य रहेगा। वहाँ के पापियों को तुम्हीं दण्ड दोगे, क्योंकि “चित्रगुप्त’ काशीवासियों के पापों का लेखा- जोखा नहीं रख सकेंगे। वह सब तुम्हें ही रखना होगा।
 शंकर की इतनी बातें सुनकर उस आकृति “भैरव’ ने ब्रह्मा के उस पाँचवें मस्तक को अपने नखाग्र भाग से काट लिया। इस पर भगवान शंकर ने अपनी दूसरी मूर्ति भैरव से कहा कि तुम ब्रह्मा के इस कपाल को धारण करो। तुम्हें अब ब्रह्म- हत्या लगी है। इसके निवारण हेतु “कापालिक’ व्रत ग्रहण कर लोगों को शिक्षा देने के लिए सर्वत्र भिक्षा माँगो और कापालिक वेश में भ्रमण करो। ब्रह्मा के उस कपाल को अपने हाथों में लेकर कपर्दी भैरव चले और हत्या उनके पीछे चली। हत्या लगते ही भैरव काले पड़ गये। तीनो लोक में भ्रमण करते हुए वह काशी आये।
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